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छत्तीसगढ़

गृह सचिव, डीजीपी, आईजी, और एसएसपी को हाई कोर्ट का नोटिस, दो सप्ताह में मांगा जवाब, बिना काम का वेतन लेने का है मामला…

मामला बिलासपुर सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है। आरक्षक जगमोहन पोर्ते ने साल 2013 में सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय में आरक्षक पद पदस्थ...

बिलासपुर। बिना सेवा दिए 7 साल से अनुपस्थित आरक्षक द्वारा लगातार वेतन आहरण किए जाने और वेतन शाखा प्रभारियों के ऊपर चलाई जा रही विभागीय कार्रवाई को लेकर दायर की गई याचिका पर हाई कोर्ट जस्टिस पीपी साहू के सिंगल बेंच ने डीजीपी, गृह सचिव, आईजी बिलासपुर रेंज और एसएसपी बिलासपुर को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब तलब किया है।

मामला बिलासपुर सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है। आरक्षक जगमोहन पोर्ते ने साल 2013 में सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय में आरक्षक पद पदस्थ हुआ। इसके बाद कहीं लापता हो गया। बावजूद इसके उसका वेतन उसके खाते में जमा होता रहा।

यह सिलसिला साल 2021 तक चला। इसी दौरान जानकारी मिली कि जगमोहन पोर्ते का मौत हो गया है। बावजूद इसके वेतन का आहरण किया जाता रहा। प्रारम्भिक तौर पर एसएसपी ने तत्काल जांच का आदेश दिया। साथ ही वेतन के रूप में किए करीब 32 लाख रुपए के घोटाला का पता लगाने को कहा।

प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस कप्तान पारूल माथुर ने चार लोगों के खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया। तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा समेत आईसीयूडब्लू डीएसपी ने तत्कालीन वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव,आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल को जांच के लिए बुलाया। चारो ने जांच टीम से नोटिस मिलने के बाद पुलिस कप्तान लिखित आवेदन दिया।

मामले में एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव समेत अन्य तीन याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में न्याय मांगा। याचिकाकर्ता सुधीर श्रीवास्तव की तरफ से अधिवक्ता पवन श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं के साथ सोची समझी रणनीति के तहत षडयंत्र किया गया है। अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि नियमानुसार सभी थाना प्रभारियों को हर महीने कर्मचारियों के वेतन निकालने या रोकने को लेकर जरूरी निर्देश पत्र भी दिया जाता है। लेकिन सिविल लाइन सीएसपी कार्यालय ने कभी भी जगमोहन को लेकर एक भी पत्र नहीं दिया।

इसलिए बिना बाधा के साल 2013 से साल 2020 तक जगमोहन पोर्ते का वेतन खाते में जमा किया गया। यकायक पुलिस प्रशासन ने एक आदेश जारी कर चारो याचिकाकर्ता को दोषी मानते हुए विभागीय जांच का आदेश दिया। जब याचिकाकर्ताओं ने विभागीय जांच के मद्देनजर जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने को कहा। लेकिन जांच अधिकारियों ने कोई नहीं जवाब दिया। और ना ही पुलिस ने ही मामले को गंभीरता से लिया।

जबकि याचिकाकर्ताओं ने इस बावत संभागीय पुलिस महानिरीक्षक को भी लिखित आवेदन कर दस्तावेज उपलब्ध कराए जाने को लेकर आवेदन भी किया। याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट को बताया कि पुलिस अधीक्षक कार्यालय की तरफ से कुछ लोगों ने षड़यंत्र कर बिना किसी ठोस कारणों के याचिकाकर्ताओं को परेशान किया है। यही कारण है कि दस्तावेज उलब्ध नहीं कराया गया।

मामले की सुनवाई के बाद न्यायाधीश पीपी साहू की कोर्ट ने गृह सचिव, डीजीपी छत्तीसगढ़, आईजी बिलासपुर, एसपी बिलासपुर, जांच अधिकारी एडिश्नल एसपी रोहित झा, आईसीयूडब्लू डीएसपी समेत अन्य लोगों को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने सभी को पन्द्रह दिनो के अन्दर जवाब पेश करने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिम्मेदार लोग यह बताएं कि मांग किए जाने के बाद भी याचिकाकर्ताओं को दस्तावेज क्यों नहीं दिया गया।

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