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राजनीति

वोट कटुवा उम्मीदवारों के कंधों पर सवार होंगे बड़ी पार्टियों के प्रत्याशी…साम, दाम, दंड और भेद…सब है जायज… वोटों का समीकरण बिगाड़ने का एक चाल ऐसा भी…

15 साल तक सत्ता पर काबिज रही भाजपा इस बार फिर से छत्तीसगढ़ का ताज हासिल करने के लिए एड़ी चोटी लगा रही है तो 15 साल बाद

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को धीरे-धीरे चुनावी बुखार चढ़ने लगा है। कोई जातीय समीकरण पर फोकस कर रहा है तो कोई हिंदुत्व का दांव खेलकर चुनावी वैतरणी पार लगाने की जुगत में है। बड़ी बात यह कि बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशी उन उम्मीदवारों पर डोले डाल रहे हैं, जो अब तक के चुनाव में वोट कटुवा साबित हुए हैं। पार्टी विशेष के वोट काटने के लिए बकायदा ऐसे प्रत्याशियों को फंडिंग भी की जा रही है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए दोनों ही प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ने लगभग अपने लड़ाकों को मैदान में उतार दिए हैं। 15 साल तक सत्ता पर काबिज रही भाजपा इस बार फिर से छत्तीसगढ़ का ताज हासिल करने के लिए एड़ी चोटी लगा रही है तो 15 साल बाद लंबे अंतराल में छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में सफल हुई कांग्रेस इस बार फिर से अपनी कुर्सी बचाने के लिए पूरे दम-खम के साथ चुनाव मैदान में है। वैसे छत्तीसगढ़ में किसी क्षेत्रीय पार्टी की इतनी बखत नहीं है कि वो सीधे बहुमत के साथ विधानसभा में पहुंच जाए, लेकिन अब तक के चुनाव में यह साफ हो चुका है कि क्षेत्रीय पार्टी से लेकर वोट कटुवा प्रत्याशी सीधे तौर पर वोटों का समीकरण बिगाड़ने में अपना दम दिखा चुके हैं।

बात करें बिलासपुर जिले की विधानसभा सीटों की तो यहां दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ट्रंप कार्ड रहे हैं। कांग्रेस से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी खुद की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस जोगी बनाई। पिछले चुनाव में उनकी पार्टी के प्रत्याशियों का प्रदर्शन भी अच्छा रहा और जोगी वोटों ध्रवीकरण करने में कामयाब रहे। वे अविभाजित बिलासपुर जिले की हर सीट पर अपना प्रभाव रखते थे। हालांकि उनका निधन होने के बाद इस चुनाव में समीकरण क्या होगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, पर इतना तय है कि अविभाजित बिलासपुर जिले में उनका प्रभाव अब भी बरकरार है। उनका यह प्रभाव दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने में आड़े आएगा। बिलासपुर जिले की सीटों (बेलतरा में भाजपा को छोड़कर) पर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों के चेहरे साफ हो चुके हैं। टिकट मिलने के बाद दोनों ही दलों के प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने के लिए अपना पूरा जोर लगा रहे हैं। दोनों ही दलों के प्रत्याशी जातीय समीकरण को तो साध रहे हैं, पर भाजपा ने एक बार फिर से हिंदुत्व का पासा फेंक दिया है।

2018 में हुए चुनाव के नतीजे पर फोकस करें तो यह साफ नजर आता है कि उम्मीदवारों ने (मरवाही छोड़कर) 5 से 11 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। दूसरी ओर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के भाग्य का फैसला करने में जोगी कांग्रेस और आप से लेकर निर्दलीय प्रत्याशियों ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। अबकी बार इन वोट कटुआ प्रत्याशियों की पूछपरख कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। यह बता दें कि पूछपरख मतदाता नहीं, बल्कि दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशी कर रहे हैं। इन्हें अनुमान है कि ये वोट कटुवा ही उनका ट्रंप कार्ड है, जो विरोधी का वोट अपने पक्ष में कर लेंगे और उनका रास्ता साफ हो जाएगा। विरोधियों का वोट कटवाने के लिए दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों ने रणनीति के साथ हर विधानसभा में दो से तीन टीमें छोड़ रखी हैं। वोट कटुवा प्रत्याशियों को विरोधी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए बकायदा फंडिंग की जा रही है।

बिलासपुर विधानसभा की बात करें तो 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शैलेश पांडेय ने 15 साल तक मंत्री रहे अमर अग्रवाल को 11 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया था। हालांकि तब प्रदेशभर में भाजपा के खिलाफ हवा चल रही थी। साथ ही जनसंघ से ताल्लुक रखने वाले बड़े चेहरों ने उस चुनाव में अपने हाथ खींच लिए थे और सिंधी समाज भी भाजपा प्रत्याशी अग्रवाल से खासा नाराज था, जिसका फायदा सीधे तौर पर पांडेय को मिला था। लेकिन इस बार माहौल ही अलग है। पांच साल में पांडेय ने जनता के बीच अपनी अच्छी छवि बनाई, पर बेचारा के रूप में। दूसरी ओर अमर अग्रवाल उस खाई को पाटने में कामयाब रहे, जिसमें वे पिछले चुनाव में गिर गए थे। बात करते हैं आप पार्टी की तो पिछले चुनाव में शैलेश आहुजा प्रत्याशी थे। भाजपा प्रत्याशी से सिंधी समाज की नाराजगी के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि ये सामाजिक वोट आहुजा को मिलेंगे, लेकिन हुआ उलट। आप पार्टी के प्रत्याशी आहुजा वोट कटुवा ही साबित हुए और उन्हें मात्र 813 वोट मिले। यानी कि उनकी जमानत जब्त हो गई। बता दें कि बिलासपुर विधानसभा में सिंधी समाज से करीब 20 हजार वोटर हैं। इतने वोटरों से ताल्लुक रखने के बाद भी आहुजा को सिंधी समाज ने नकार दिया। इस बार आप पार्टी से डॉ. उज्जवला कराड़े चुनाव मैदान में हैं। यह भी जाहिर है कि वो बिलासपुर विधानसभा में जातीय समीकरण में फिट नहीं बैठती हैं। वैसे भी छत्तीसगढ़ में आप पार्टी की दखल न के बराबर है।

पिछले चुनाव के नतीजों का आंकलन करें तो लगता है कि इस बार भी क्षेत्रीय पार्टी, आप से लेकर निर्दलीय उम्मीदवार वोट कटुवा साबित होंगे। छत्तीसगढ़ विधानसभा के दूसरे चरण के चुनाव के लिए आज से यानी कि 21 अक्टूबर से नामांकन भरने का सिलसिला शुरू हो रहा है। इसे लेकर प्रशासन की पूरी तैयारी है। दूसरी ओर दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों ने सोची-समझी रणनीति के तहत वोट कटुवा प्रत्याशियों के कंधे पर सवार होने की ठान ली है। इसके लिए वो अपनी तरफ से निर्दलीय प्रत्याशी भी खड़ा करेंगे। छत्तीसगढ़ की राजनीति में प्रभाव नहीं डाल पाने वाली पार्टियों के प्रत्याशियों पर भी दांव लगाएंगे। रणनीति यही रहेगी कि उस पार्टी पर आस्था रखने वालों को वे उनके पक्ष में करें और उन मतदाताओं का मन बदल दें तो जो राष्ट्रीय पार्टी के प्रत्याशी से मनभेद रखते हैं। बहरहाल, ये तो चुनाव है। चुनाव फतह करने के लिए हर चीज जायज है। चाहे साम, दाम, दंड और भेद की क्यों न आजमाइश की जाए।

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