Thursday, April 24, 2025
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का सख्त रुख: विवाहित बहन को अनुकंपा नियुक्ति न देने पर DGP और IG बिलासपुर को नोटिस…

छत्तीसगढ़ में अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े एक अहम मामले में हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए पुलिस महानिदेशक (DGP), रायपुर एवं पुलिस महानिरीक्षक (IG), बिलासपुर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मामला बिलासपुर जिले के ग्राम फरहदा गतौरा निवासी निधि सिंह राजपूत का है, जिन्होंने अपने दिवंगत भाई की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी।

निधि सिंह राजपूत के भाई क्रांति सिंह राजपूत कोरबा जिले में पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ थे। 13 अप्रैल 2023 को सेवा के दौरान उनका आकस्मिक निधन हो गया। इसके पश्चात निधि ने पुलिस अधीक्षक कोरबा के समक्ष अनुकंपा नियुक्ति का आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने एएसआई (सहायक उप निरीक्षक) पद की मांग की थी।

हालांकि, कोरबा पुलिस अधीक्षक ने आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया कि निधि विवाहित हैं और पूर्व की नीति के अनुसार केवल अविवाहित बहनों को ही अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार है।

इस फैसले से आहत होकर निधि ने बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट को बताया गया कि 2013 की नीति में अवश्य ही केवल अविवाहित बहनों को पात्र माना गया था, लेकिन 22 मार्च 2016 को सामान्य प्रशासन विभाग, रायपुर द्वारा इस नीति में संशोधन किया गया। इस संशोधन में ‘अविवाहित बहन’ के स्थान पर केवल ‘बहन’ शब्द का उल्लेख किया गया, जिससे विवाहित बहनों को भी अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार प्राप्त हो गया।

कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए इसे विचारणीय माना और मामले में पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस महानिरीक्षक को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि नीति में संशोधन हुआ है, तो विवाहित बहनों को मात्र वैवाहिक स्थिति के आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता।

यह मामला न केवल निधि सिंह राजपूत की व्यक्तिगत लड़ाई है, बल्कि यह एक व्यापक सामाजिक और प्रशासनिक मुद्दा भी है जो उन परिवारों को प्रभावित करता है, जिनके सदस्य सेवा के दौरान असामयिक रूप से दिवंगत हो जाते हैं।

अब इस पर अदालत का अंतिम निर्णय पूरे राज्य में अनुकंपा नियुक्ति से जुड़े मामलों में एक नजीर बन सकता है। साथ ही, यह मामला यह भी रेखांकित करता है कि नीतियों में संशोधन के बावजूद यदि उनका पालन नहीं किया जाता, तो पीड़ित पक्ष को न्याय के लिए न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है।

आने वाले समय में यह देखना रोचक होगा कि पुलिस विभाग इस पर क्या जवाब प्रस्तुत करता है और कोर्ट इस मामले में क्या अंतिम निर्णय देता है।

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