अखलाख खान / बिलासपुर
प्रदेश में भाजपा की 15 साल के शासनकाल और दिग्गज नेता प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक के बिल्हा विधानसभा क्षेत्र के गांव की ये हालत देखकर यकीन ही नहीं होता, पर ये 100 प्रतिशत सच्चाई है। इस गांव के ग्रामीणों तक अब तक सरकारी योजनाओं की एक रोशनी नहीं पहुंच पाई है। लकड़ी के धुएं के बीच आंखें मिंजकर खाना बनाना… पगडंडी में चलना और आधे पेट पानी पीना इनकी नियति बन गई है। यहां के ग्रामीणों को तो राशन-पेंशन के दर्शन तक नहीं हुए हैं। 5 साल से विधायक को तलाश रहे हैं, लेकिन वो हैं कि मिलते ही नहीं। अब इनका सब्र का बांध टूट चुका है और वोट मांगने आने वाले नेताओं को सबक सिखाने का मन बनाकर बैठे हुए हैं।
हम बात कर रहे हैं बिल्हा विधानसभा की ग्राम पंचायत अमेरी-अकबरी के आश्रित गांव मांझीपारा की। अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने में करीब 22 साल पहले इस गांव में 32 परिवारों को बसाया गया था। सरकारी नुमाइंदों के बड़े-बड़े दावे सुनकर ग्रामीणों की आंखें देखते ही चमकती थीं। दरअसल, सरकारी नुमाइंदों ने इन्हें शहर जैसी सुविधाएं देने का सब्जबाग दिखाया था। मसलन, चमचमाती सड़कें, बिजली की दुधिया रोशनी की चमक और 24 घंटे पानी की सुविधा। दो साल तक जब कुछ भी नहीं हुआ, इनकी उम्मीद टूट गई थी। 1 नवंबर 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो इनकी उम्मीदें फिर हिलोरे मारने लगीं। मन में आस जगी कि अब तो उनका भी भला होगा। सपने देखने लगे कि उनके गांव का उद्धार होगा, पर सपने तो सपने हैं… टूटकर बिखर गए।
महिलाएं बोलीं- धरम खुशहाल… सियाराम गायब और हम हो गए हैं बदहाल
महिलाएं कहती हैं कि प्रदेश में 15 साल से भाजपा की सरकार है। चुनाव हारने के बाद भी प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज धरमलाल खुशहाल हैं, लेकिन बिल्हा विधानसभा के अधिकांश गांव बेहाल हैं। सरकारी योजनाओं की कोई किरण उन तक पहुंच जाए। इसके लिए वे पांच साल तक विधायक सियाराम की तलाश करते रहे, लेकिन वे तो नहीं मिले। मिला तो अंधेरे का साया। 21वीं सदी और हाईटेक युग में इस गांव की दशा देखकर अंदाजा हो जाता है कि आदिम युग के लोग ऐसे ही अभाव के बीच जीवन गुजारते रहे होंगे।
( बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ… का नारा देने वाली भाजपा सरकार ने ही किया बेटियों से किया किनारा… पढ़िए अगले अंक में…)