अब चुनाव में किसी धार्मिक गुरु या फिर धार्मिक संस्था के मुख्य पद पर बैठे व्यक्ति को अपने अनुयायियों से किसी एक राजनीतिक दल को वोट देने की अपील करना महंगा पड़ सकता है.
ऐसा करने पर उन धार्मिक गुरुओं को न सिर्फ सात साल तक की जेल हो सकती है बल्कि उनपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है. 15 दिसंबर से शुरू हो रहे संसद की शीतकालीन सत्र में इससे जुड़े बिल पर चर्चा हो सकती है.
भारतीय राष्ट्रीय लोक दल (आईएनएलडी) के सांसद दुष्यंत चौटाला ने धार्मिक संस्थाओं (दुरुपयोग निवारण) अधिनियम, 1988 में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया है ताकि धार्मिक संस्थाओं को राजनीतिक दलों के लिए अनुयायियों को ऐसा आदेश देने का मौका ना मिले.
2015 में सदन में रखे गए इस बिल के मुताबिक ‘कोई भी धार्मिक संस्था या प्रबंधक या आध्यात्मिक गुरु किसी भी व्यक्ति या समूह को वोट देने या किसी भी राजनीतिक दल या किसी व्यक्ति विशेष के चुनाव में वोट देने के अपील नहीं कर सकेगा.
अगर कोई भी धार्मिक संस्था या फिर आध्यात्मिक गुरू ऐसा करेगा तो उन्हें कारावास की सजा दी जा सकती है. इसमें सजा की अधितम अवधि 7 साल होगी. यदि कोई आध्यात्मिक नेता ऐसा करता है, तो उन्हें उस अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी जो सात साल तक हो सकती है. ऐसे मामलों में दोषी पाये जाने पर 10 लाख रुपये तक जुर्माना लगाने का भी प्रावधान होगा.
इस बिल के प्रस्ताव को लेकर दुष्यंत चौटाला ने कहा, विधेयक का व्यापक उद्देश्य धर्म, धार्मिक संस्थानों और आध्यात्मिक गुरुओं के राजनीतिकरण और ऐसे संस्थानों के अपराधीकरण को रोकना है.