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छत्तीसगढ़ का हरेली त्यौहार : आईए जाने परंपरा और मान्यता…

बिलासपुर-(ताज़ाख़बर36गढ़) हरेली छत्तीसगढ़ में मनाए जाने वाले लोकप्रिय त्योहारों मे से एक है। यह छत्तीसगढ़ का सर्वप्रथम त्यौहार है। छत्तीसगढ़ राज्य में हरेली महोत्सव किसानों का लोकप्रिय त्यौहार है। हरेली शब्द हिंदी शब्द हरियाली से उत्त्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है “वनस्पति“ या “हरियाली” हरेली का त्यौहार सावन मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है, जिसे श्रावणी अमावस्या भी कहा जाता है। जो जुलाई और अगस्त महीने के बीच वर्षा ऋतु के समय होता है। हरेली छत्तीसगढ़ के गोंड जनजातीय का मुख्य रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है।

इस त्यौहार की शुरुआत प्रातःकालिन घरों के प्रवेश द्वार पर नीम की पत्तियाँ व चौखट में कील लगा कर की जाती है। ऐसी मान्यता है कि द्वार पर नीम की पत्तियाँ व कील लगाने से घर में रहने वाले लोगो की अनिष्टकारी शक्तियों से रक्षा होती हैं। किसान नीम की पत्ती व कील लगाने वाले को अपने इच्छा अनुसार दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि दान में देते हैं। इस कार्य के पश्चात पुरे दिन भर यह त्यौहार मनाया जाता है।

इस दिन किसान खेती-किसानी में काम आने वाले उपकरण जैसे कि नागर,गैंती,कुदाली,फावड़ा इत्यादि की साफ-सफाई कर पूजा करते हैं साथ ही साथ बैलों व गायों की भी इस शुभ दिन पर पूजा की जाती हैं ताकि वर्ष भर अच्छी फसल सुनिश्चित हो सके। इस दिन कुलदेवता की भी पूजा करने की परपंरा हैं। हरेली के दिन किसी भी किसान को काम करने की अनुमति नही होती हैं। इस अवसर पर घरों में गुड़ का चिला बनाते है तथा इस मीठे चिले को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में खाते है। कई घरों में कुल देवता और ग्राम देवता को प्रस्सन करने के लिए मुर्गा और बकरे की बलि दी जाती है। यह भी मान्यता है कि इस दिन गायों और बैलों को नमक और बरगंडा की पत्तियाँ खिलाई जाती है जिससे उनके रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।

तंत्र विद्या

तंत्र विद्या सीखने के लिए हरेली के दिन को उत्तम माना जाता है। ऐसी मान्यता है की जो लोग तंत्र विद्या सीखने में इच्छुक होते है वे लोग श्रावणी अमावस्या यानि कि हरेली के दिन को ही शुभ मानते है| इस दिन प्रदेश में लोकहित की दृष्टि से जिज्ञासु शिष्यों को पीलिया, विष उतारने, नजर से बचाने, महामारी और बाहरी हवा से बचाने समेत कई तरह की समस्याओ से बचाने के लिए मंत्र सिखाया जाता है।

पंरपरा

हरेली के दिन गेड़ी नामक खेल का आयोजन किया जाता हैं जिसमे विशेष रूप से बच्चे भाग लेते है। ये गेड़ी बांस से बनी होती है जिसकी ऊँचाई चार से पांच फीट होती है, कई जगहों पर यह गेड़ी दास से पन्द्रह फीट ऊँची बनाई जाती है जिस पर बच्चे चढ़ कर गेड़ी दौड़ का आनंद लेते है। कई जगहों पर गेड़ी के साथ ही नारियल फेंक प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है इस प्रतियोगिता में भी युवा वर्ग के लोग विशेष रूप से भाग लेते है।

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