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पांच साल की उम्र में अनाथ हुए बच्चे को 19 साल बाद मिलेगी अनुकंपा पर नौकरी, सुप्रीम कोर्ट का आदेश…

पांच साल की उम्र में अनाथ हुए बच्चे को 19 वर्ष तक दर-दर भटकने के बाद आखिरकार देश की सबसे बड़ी अदालत ने न्याय दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने का आदेश सुनाया.

जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया कि इतने वर्षों के बाद अनुकंपा के आधार पर नौकरी देना गलत नजीर बनेगा. पीठ ने कहा, अगर यह गलत नजीर है तो गलत ही सही. वर्षों तक जिन मुश्किल हालातों से बच्चों (आवेदक व उसकी बहन) को गुजरना पड़ा, उसे भलीभांति समझा जा सकता है. सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी पाया कि नाना के पास रह रहे इन बच्चों को पेंशन समेत वित्तीय लाभों से 15 वर्ष से अधिक समय तक वंचित रखा गया.

पेंशन व अन्य बकाया भी उन्हें 2019 में तब मिला, जब राज्य सरकार के खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई. पीठ ने कहा, यह तो राज्य सरकार के खिलाफ जुर्माना लगाने का उचित मामला है. राज्य सरकार की ओर से पेश वकील द्वारा बार-बार जुर्माना नहीं करने के आग्रह पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार पर जुर्माना तो नहीं लगाया, लेकिन मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए संबंधित अथॉरिटी को दो महीने के भीतर गणेश शंकर शुक्ला (याचिकाकर्ता) को शैक्षणिक योग्यता के आधार पर नौकरी देने का आदेश दिया है.

याचिकाकर्ता गणेश की पैरवी करने वाले वकील आशुतोष यादव ने दलील दी कि गणेश वर्ष 2015 में बालिग हुआ था और उसने 2016 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की थी. बालिग होने के बाद उसको अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने के अधिकार के बारे में जानकारी प्राप्त हुई. उसके बाद उसने विभिन्न फोरम का दरवाजा खटखटाया.

यह है पूरा मामला

याचिका के मुताबिक गणेश की मां गीता देवी शुक्ला जिला रमाबाई नगर (कानपुर देहात) के एक प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक थीं. 13 मार्च 2003 को गीता देवी की मृत्यु हो गई. उस वक्त गणेश की उम्र महज पांच वर्ष थी, जबकि उसकी बहन आठ वर्ष की थी. पिता की मृत्यु पहले ही हो गई थी. छोटी सी उम्र में अनाथ हुए बच्चों को नाना ने पाला पोसा. विभाग ने गीता देवी का बकाया/फंड याचिकाकर्ता को नहीं दिया. दिसंबर 2008 में याचिकाकर्ता की ओर से पेंशन/फंड रिलीज करने का संबंधित अथॉरिटी के पास अभ्यावेदन दिया गया, लेकिन अथॉरिटी ने कुछ नहीं किया. 2016 में ट्रिब्यूनल ने संबंधित अथॉरिटी ने परिवार पेंशन देने का आदेश दिया. इस आदेश का पालन न होने पर अवमानना याचिका दायर की गई, तब जाकर पेंशन जारी हुई, लेकिन अनुकंपा पर नौकरी को लेकर उसे राहत नहीं मिली. इलाहाबाद हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिलने पर गणेश ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की.

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