राजनीति

राजनीति में परिवारवाद और सामंतवाद का वर्चस्व, लोकतंत्र पर मंडरा रहा खतरा: रघु ठाकुर…पेंशन प्रणाली पर भी उठाए सवाल…

बिलासपुर। समाजवादी विचारक और लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघु ठाकुर ने देश की वर्तमान राजनीति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि आज का राजनीतिक माहौल जनहित की अपेक्षा परिवारवाद, सामंतवाद और पूंजीवाद की गिरफ्त में फंस गया है, जिससे लोकतंत्र की आत्मा घायल हो रही है।

बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत करते हुए रघु ठाकुर ने कहा कि आज की राजनीति में आम जनमानस की पीड़ा और विचारधारा का अभाव है। उन्होंने महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया का हवाला देते हुए कहा कि उनके सपनों का भारत आज खोता जा रहा है। राजनीति अब न्याय, नैतिकता और सेवा की जगह सत्ता, पैसे और वंशवाद की होड़ बन चुकी है।

ठाकुर ने कहा कि लोकतंत्र का मूल तत्व विचारों की स्वतंत्रता और वैचारिक राजनीति है, लेकिन आज राजनीतिक दलों के भीतर तानाशाही का माहौल है। आंतरिक लोकतंत्र नदारद है और नेतृत्व “नेता” से “सुप्रीमो” तक सिमट चुका है। संसद में धनकुबेरों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, और पचासी करोड़ लोग सरकार की मदद से पेट भर पा रहे हैं — यह एक गहरी विडंबना है।

उन्होंने आरोप लगाया कि आज राजनीति में नेता बनकर लोग पैसा कमा रहे हैं, कार्यकर्ताओं को पैसों का गुलाम बना रहे हैं, और सत्ता का हस्तांतरण केवल कुछ परिवारों तक सीमित हो गया है। संसद अब लोकतांत्रिक आज़ादी का प्रतीक नहीं रही, बल्कि एक “पिरामिडीय सत्ता संरचना” में तब्दील हो गई है, जहां केवल शीर्ष नेतृत्व को ही ताकत प्राप्त है।

चुनाव सुधार और “एक देश, एक चुनाव” की मांग

रघु ठाकुर ने चुनाव प्रणाली में व्यापक सुधार की मांग की। उन्होंने कहा कि पंचायत से लेकर संसद तक के चुनाव एक साथ दो माह के भीतर कराए जाने चाहिए और इस दौरान अन्य सरकारी कार्यों को रोका जाए। साथ ही, उन्होंने सुझाव दिया कि एक व्यक्ति को पांच वर्षों में केवल एक बार ही चुनाव लड़ने की अनुमति होनी चाहिए।

उन्होंने चुनावों में धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई और कहा कि राजनीतिक दलों को सरकारी पैसे से चुनाव लड़ने की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही, जो दल अपने घोषणापत्र पर अमल नहीं करते, उनकी मान्यता रद्द कर देनी चाहिए।

पेंशन पर उठाए सवाल

पूर्व सांसदों और विधायकों को मिलने वाली पेंशन और सुविधाओं पर भी रघु ठाकुर ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि 1947 से 1976 तक कोई पेंशन व्यवस्था नहीं थी, फिर अब क्यों? उन्होंने इसे “पेंशन के नाम पर लूट” करार दिया और दो-दो ब्लॉक की सुविधाएं लेने वाले नेताओं से मकान वापस लेने की बात कही।

भारतीय संस्कृति पर सांस्कृतिक हमला

राजनीतिक आलोचना के साथ-साथ रघु ठाकुर ने भारतीय संस्कृति में आई गिरावट पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि पूंजीवाद की संस्कृति ने भारतीय जीवन मूल्यों को प्रभावित किया है। बाजारवाद और सांप्रदायिक कटघरे समाज को बांट रहे हैं। संवाद की जगह अब टकराव ने ले ली है।

अमेरिका और स्वदेशी पर टिप्पणी

अमेरिका में टैरिफ नीति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि जो अमेरिका कभी विदेशी व्यापार का समर्थक था, वह आज स्वदेशी की राह पर है और टैरिफ का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के लिए कर रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक शक्तियां भी अब आत्मनिर्भरता की ओर लौट रही हैं।

रघु ठाकुर के विचार आज की राजनीति में एक जरूरी वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, जो विचारधारा, पारदर्शिता और जनहित की ओर लौटने की मांग करता है। परिवारवाद, पूंजीवाद और तानाशाही राजनीति से ऊपर उठकर यदि भारतीय लोकतंत्र को बचाना है, तो ऐसे सवालों और सुझावों पर गंभीर मंथन आवश्यक है।

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