बिलासपुर (छत्तीसगढ़): केंद्र सरकार द्वारा सीमा पार आतंकवाद और ऑपरेशन सिंदूर जैसे अहम मुद्दों पर भारत का पक्ष वैश्विक मंचों पर मजबूती से रखने के लिए सर्वदलीय सांसदों के 7 डेलिगेशन गठित किए गए हैं। ये डेलिगेशन दुनिया के प्रमुख देशों, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के सदस्य देशों का दौरा करेंगे। इस पहल को भारत की विदेश नीति और रणनीतिक संवाद की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है।
संसदीय कार्य मंत्रालय ने शनिवार को इन डेलिगेशन का नेतृत्व करने वाले सांसदों के नाम घोषित किए। खास बात यह रही कि कांग्रेस की ओर से केवल शशि थरूर का नाम इस सूची में शामिल है। परंतु अब कांग्रेस पार्टी ने साफ किया है कि उसने केंद्र सरकार को थरूर का नाम प्रस्तावित नहीं किया था। इस स्पष्टीकरण ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
इस मुद्दे पर जब छत्तीसगढ़ के दौरे पर पहुंचे कांग्रेस नेता और प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट से सवाल किया गया कि क्या कांग्रेस पार्टी शशि थरूर को डेलिगेशन में भेजने के काबिल नहीं समझती, तो उन्होंने जवाब देने से बचते हुए कहा, “कांग्रेस पार्टी के हर सांसद, विधायक और कार्यकर्ता काबिल हैं।”
पायलट का यह जवाब हालांकि एक संतुलित बयान प्रतीत होता है, लेकिन राजनीतिक जानकार इसे भाजपा पर एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कटाक्ष मान रहे हैं। उनके अनुसार, पायलट ने सवाल को सीधे तौर पर खारिज करने के बजाय उस अंदाज़ में जवाब दिया, जो कई अर्थ निकालने की गुंजाइश छोड़ता है।
शशि थरूर, जो एक अनुभवी राजनयिक और विदेश मामलों के जानकार माने जाते हैं, का नाम ऐसे डेलिगेशन में आना स्वाभाविक है। लेकिन कांग्रेस का यह कहना कि उन्होंने उनका नाम नहीं भेजा, यह संकेत देता है कि पार्टी और थरूर के बीच मतभेद या संवादहीनता की स्थिति हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रकरण यह भी दर्शाता है कि विपक्ष और सरकार के बीच विदेश नीति जैसे संवेदनशील मुद्दों पर तालमेल की स्पष्ट कमी है। अगर थरूर जैसे वरिष्ठ नेता को केंद्र सरकार ने अपने स्तर पर चुना है, तो यह एक सकारात्मक पहल हो सकती थी, लेकिन कांग्रेस की प्रतिक्रिया ने मामले को और पेचीदा बना दिया है।
केंद्र की इस पहल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि सुदृढ़ करने की कोशिश के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन इसमें विपक्ष की भूमिका और उसकी सहमति का अभाव, सवाल खड़े करता है। सचिन पायलट का जवाब भले ही कूटनीतिक हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि कांग्रेस इस पूरे घटनाक्रम को लेकर पूरी तरह सहज नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि शशि थरूर इस मुद्दे पर खुद क्या रुख अपनाते हैं और क्या कांग्रेस भविष्य में इस तरह के कदमों में सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार होती है।