बिलासपुर। जिले के गांवों में अवैध शराब के खिलाफ पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई लगातार जारी है। हर दिन किसी न किसी गांव में कच्ची महुआ शराब की जब्ती और आरोपियों की गिरफ्तारी की खबरें सामने आ रही हैं। वहीं दूसरी ओर, आबकारी विभाग की निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं। यह वही विभाग है जिसकी मूल जिम्मेदारी अवैध शराब की रोकथाम और निगरानी की है, मगर जमीनी हकीकत इसके विपरीत है।
पिछले कुछ दिनों से बिलासपुर पुलिस ने अवैध शराब कारोबारियों के खिलाफ अभियान चलाया हुआ है। 31 मई को थाना कोनी के प्रभारी राहुल तिवारी को सूचना मिली कि ग्राम गतौरी भाठापारा निवासी सीताराम उर्फ लाल लोनिया अपने बाड़ी में कच्ची महुआ शराब रखकर बिक्री के लिए ग्राहक की तलाश कर रहा है। सूचना के आधार पर की गई रेड कार्यवाही में पुलिस ने आरोपी से 5.5 लीटर महुआ शराब, जिसकी कीमत लगभग ₹1100 है, जब्त की। आरोपी के खिलाफ 34(2) आबकारी अधिनियम के तहत कार्रवाई करते हुए उसे न्यायिक रिमांड पर भेजा गया।
इसी दिन, ग्राम मटसगरा में भी एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया। मुखबिर से सूचना मिलने के बाद थाना तखतपुर पुलिस ने आरोपी अनिल कुमार साहू को गिरफ्तार कर उसके कब्जे से 10 लीटर कच्ची महुआ शराब, कीमत लगभग ₹2000, जब्त की। यह कार्रवाई अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अर्चना झॉ और अनु. अधि. नूपुर उपाध्याय के मार्गदर्शन में की गई।
इन कार्यवाहियों में पुलिस की तत्परता और मुखबिर तंत्र की सक्रियता काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन आबकारी विभाग की निष्क्रियता चिंताजनक बनी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि गांवों में खुलेआम शराब बन रही है, जिससे समाज में गंभीर दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं। महिलाओं और युवतियों को शराबियों के बीच से रोज गुजरना पड़ता है, जिससे उनका जीवन और सुरक्षा दोनों खतरे में हैं।
आबकारी विभाग के अधिकारी न तो नियमित जांच अभियान चला रहे हैं, न ही शराब निर्माण के केंद्रों पर छापेमारी कर रहे हैं। इसका खामियाजा सीधे ग्रामीण समुदाय को भुगतना पड़ रहा है।
एसएसपी रजनेश सिंह के निर्देशन में जिले की पुलिस ने अवैध नशे के कारोबारियों के खिलाफ जोरदार मोर्चा खोल रखा है। थानों को निर्देशित किया गया है कि नशे के हर रूप पर सख्ती से कार्रवाई करें, चाहे वह शराब हो, गांजा हो या अन्य मादक पदार्थ।
जमीनी हकीकत यह है कि जब तक आबकारी विभाग सक्रिय नहीं होता और पुलिस के प्रयासों को सहयोग नहीं देता, तब तक इस समस्या का स्थायी समाधान मुश्किल होगा। अब समय आ गया है कि विभागीय लापरवाही पर भी सवाल उठाए जाएं और ज़िम्मेदारी तय की जाए।