बिलासपुर। शहर की रौनक और भागदौड़ के बीच भी कुछ कोने ऐसे हैं, जहां इंसानियत आज भी सांस ले रही है। बिलासपुर के नेहरू चौक के पास नगर निगम द्वारा बनाई गई ‘नेकी की दीवार’ ऐसी ही एक मिसाल है, जहां न अमीरी-गरीबी की कोई दीवार है, न एहसान का बोझ।
यहां हर व्यक्ति—चाहे गरीब हो या ज़रूरतमंद—अपनी पसंद, साइज और आवश्यकता के अनुसार मुफ्त में कपड़े चुन सकता है।
🧥 नेकी की दीवार: जहां कपड़ों के साथ बांटी जाती है खुशी
नेकी की दीवार का विचार बेहद सादा है, लेकिन असर गहरा।
शहर के वे लोग, जो अपने बच्चों या परिवार के पुराने लेकिन उपयोगी कपड़े फेंकने के बजाय किसी और की मदद करना चाहते हैं, वे इन कपड़ों को यहां लाकर टांग देते हैं।
यहां रोजाना ऐसे सैकड़ों कपड़े जमा होते हैं—शर्ट, पैंट, टी-शर्ट, साड़ी, बच्चों के कपड़े, स्वेटर और जैकेट तक।
कई बार लोग अपने बच्चों के छोटे हो चुके ब्रांडेड कपड़े, जूते, बैग या खिलौने भी छोड़ जाते हैं।
ये वस्तुएं उन लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं, जिनके पास इन्हें खरीदने की सामर्थ्य नहीं।
😊 मुस्कान की कीमत नहीं होती
जो लोग यहां आते हैं, उन्हें किसी लाइन में नहीं लगना पड़ता, न किसी से अनुमति लेनी होती है।
वे अपनी पसंद से कपड़े चुन सकते हैं।
कभी-कभी सही साइज ढूंढने में समय जरूर लगता है, लेकिन जब कोई बच्चा या बुजुर्ग नया कपड़ा पहनकर मुस्कुराता है, तो लगता है—यह दीवार नहीं, इंसानियत का आईना है।
एक स्थानीय नागरिक ने बताया —
“जब हमने देखा कि हमारे घर में बहुत से अच्छे कपड़े बेकार पड़े हैं, तब सोचा कि इन्हें किसी जरूरतमंद को देना ही सही नेकी होगी। अब हम हर महीने यहां कुछ न कुछ लेकर आते हैं।”
❤️ इंसानियत की असली अलमारी
‘नेकी की दीवार’ अब केवल कपड़ों का दान केंद्र नहीं रही।
यह धीरे-धीरे इंसानियत की अलमारी में बदल चुकी है।
यहां हर हैंगर पर किसी का अपनापन झूलता है और हर मुस्कान के पीछे किसी का नेक इरादा छिपा होता है।
इस मुहिम ने यह साबित कर दिया है कि दया और संवेदना दिखाने के लिए किसी बड़ी संस्था या NGO की आवश्यकता नहीं—बस एक संवेदनशील सोच और अच्छा दिल चाहिए।
📚 क्यों न दायरा बढ़ाया जाए?
कई समाजसेवी अब यह सुझाव दे रहे हैं कि यह अभियान केवल कपड़ों तक सीमित न रहे।
यहां पढ़ाई-लिखाई का सामान, स्कूल बैग, खेलकूद की सामग्री, जूते, और बच्चों के खिलौने भी रखे जा सकते हैं।
इससे गरीब बच्चों की मदद केवल कपड़ों तक नहीं रहेगी, बल्कि उनकी शिक्षा और खुशी दोनों को नया रूप मिलेगा।
“अगर हर परिवार साल में एक बार ही अपने घर के अच्छे लेकिन अनुपयोगी सामान यहां दान करे, तो बिलासपुर का सामाजिक चेहरा बदल सकता है।”
— एक स्थानीय समाजसेवी का कथन।
🧹 थोड़ी जिम्मेदारी भी जरूरी
जहां इंसानियत की मिसालें कायम हो रही हैं, वहीं कुछ छोटी लापरवाहियां इस नेक काम को प्रभावित भी कर रही हैं।
कभी-कभी लोग अपनी पसंद के कपड़े ढूंढने के दौरान कपड़ों को इधर-उधर बिखेर देते हैं।
इससे यह जगह अव्यवस्थित हो जाती है, जो देखने में भी खराब लगता है और बाकी जरूरतमंदों के लिए असुविधा पैदा करता है।
इसलिए यह ज़रूरी है कि कपड़े चुनने वाले लोग भी जगह की साफ-सफाई और व्यवस्था का पूरा ध्यान रखें।
नेकी तभी पूरी होती है जब उसमें सम्मान और अनुशासन दोनों शामिल हों।
🌈 बिलासपुर की पहचान बनती जा रही है यह मुहिम
‘नेकी की दीवार’ अब शहर की एक नई पहचान बन चुकी है।
यह पहल न केवल गरीबों की मदद कर रही है, बल्कि समाज में दान की संस्कृति और साझा जिम्मेदारी की भावना को भी बढ़ा रही है।
नगर निगम भी इस पहल को और विस्तारित करने की योजना बना रहा है ताकि इसे शहर के अन्य वार्डों में भी लागू किया जा सके।
📦 बॉक्स स्टोरी: कैसे करें योगदान
स्थान: नेहरू चौक के पास, बिलासपुर
संचालन: नगर निगम बिलासपुर
दान में दे सकते हैं:
- साफ-सुथरे, उपयोग योग्य कपड़े
- जूते, बैग, बच्चों के खिलौने
- स्कूल यूनिफॉर्म, स्टेशनरी आइटम
- स्पोर्ट्स आइटम या किताबें
ध्यान रखें:
- फटे, गंदे या अनुपयोगी वस्त्र न रखें
- कपड़ों को तह करके रखें
- जगह को साफ रखें, दूसरों के प्रति सम्मान बनाए रखें
✨ अंत में…
‘नेकी की दीवार’ एक छोटी-सी जगह है, लेकिन इसका असर बड़ा है।
यह हमें सिखाती है कि समाज बदलने के लिए नारे नहीं, नियत चाहिए।
कपड़े भले पुराने हों, पर जब वे किसी के चेहरे पर मुस्कान लाते हैं, तो वे नए हो जाते हैं—
और यही है असली “उम्मीद की अलमारी” का मकसद।


