बिलासपुर। छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख शहर है, हाल ही में गंभीर स्वास्थ्य संकटों का सामना कर रहा है। पूर्व विधायक शैलेश पांडेय ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर सवाल उठाए हैं। टीकाकरण के बाद दो मासूम बच्चों की मौत ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। बच्चों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि उनकी मौत सरकारी लापरवाही का नतीजा है। टीकाकरण के कुछ देर बाद ही दोनों बच्चों की मृत्यु होना गंभीर सवाल खड़े करता है।
टीकाकरण के बाद मौतें: जिम्मेदार कौन?
कोटा के पटेता गांव में टीकाकरण के बाद बच्चों की मौत से पूरे क्षेत्र में रोष व्याप्त है। शैलेश पांडेय ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि बच्चे पूर्णतः स्वस्थ थे, फिर भी टीके के बाद उनकी मृत्यु क्यों हुई? गाँव वालों ने सरकारी जांच समिति पर अपना आक्रोश व्यक्त किया है और स्पष्ट रूप से सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया है। सबसे गंभीर सवाल यह है कि टीकाकरण के समय चाइल्ड स्पेशलिस्ट क्यों नहीं थे? कोटा के बीएमओ ने भी डॉक्टर की अनुपस्थिति की बात मानी है, फिर सवाल यह उठता है कि नियुक्त डॉक्टरों को बिलासपुर अटैच क्यों किया गया था? कोई वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई, और टीके के बाद डॉक्टरों ने उचित इलाज क्यों नहीं किया?
स्वाइन फ्लू, डायरिया और डेंगू से हो रही मौतें
शैलेश पांडेय ने सिर्फ टीकाकरण से हुई मौतों पर ही सवाल नहीं उठाए, बल्कि जिले में स्वाइन फ्लू, डायरिया, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों से हो रही लगातार मौतों पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सरकार इन बीमारियों के प्रति बेहद लापरवाह हो चुकी है। लगातार हो रही मौतें यह दर्शाती हैं कि सरकार की स्वास्थ्य सेवाएँ पूरी तरह से चरमरा चुकी हैं। जनता के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार ने अपने कर्तव्यों को नजरअंदाज कर दिया है।
पांडेय ने कहा कि थाली बजाने से बीमारी दूर नहीं होगी। सरकार को रोकथाम और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास के लिए पर्याप्त फंड आवंटित करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बिलासपुर में स्वास्थ्य सेवाएँ लगातार गिरावट पर हैं, जिससे जनता का सरकार के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
AIMS की स्थापना में रुचि क्यों नहीं?
पूर्व विधायक शैलेश पांडेय ने बिलासपुर में घोषित एम्स (AIMS) की स्थापना में सरकार की उदासीनता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के समय से ही बिलासपुर में एम्स की स्थापना की घोषणा की गई थी, लेकिन डबल इंजन की सरकार इस पर कोई उत्साही रुचि नहीं दिखा रही है। यह सवाल उठता है कि क्या बीजेपी सरकार का मन बदल गया है, या फिर दिल्ली में उनकी बात नहीं सुनी जा रही है?
उन्होंने यह भी बताया कि कांग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल तैयार किया था, लेकिन वर्तमान सरकार अभी तक इसे शुरू नहीं कर पाई है। बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार आखिरकार स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति इतनी असंवेदनशील क्यों है?
स्वास्थ्य सेवाओं का गिरता स्तर: जनता का विश्वास खोती सरकार
बिलासपुर के हालात यह दर्शाते हैं कि राज्य की स्वास्थ्य सेवाएँ बेहद नाजुक स्थिति में हैं। चाहे वह टीकाकरण के बाद मासूम बच्चों की मौत हो, या फिर स्वाइन फ्लू और अन्य बीमारियों से हो रही मौतें, सरकार की असंवेदनशीलता और स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली स्पष्ट रूप से सामने आ रही है।
शैलेश पांडेय ने जो सवाल उठाए हैं, वे केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि जनता की सुरक्षा और जीवन से जुड़े हुए हैं। सरकार को जल्द से जल्द इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और आवश्यक कदम उठाने चाहिए, ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं से बचा जा सके।
बिलासपुर की जनता अब जवाब चाहती है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उन्हें जवाब दे और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए।