भारतीय रेल अपने वरिष्ठ अधिकारियों को मिलने वाले सैलून को बंद करने जा रहा है. इससे रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजमस्ती बंद होने वाली है. दरअसल उन्हें अब सैलून की जगह एसी 2 और एसी 3 में सफर करने का निर्देश दिया गया है.
भारतीय रेल में अंग्रेज़ों के ज़माने से ही वरिष्ठ अधिकारियों के लिए सैलून की व्यवस्था रखी गई थी. यह एक तरह का विशेष डिब्बा होता है जिसमें सोने और बैठने के लिए अलग-अलग जगह होती है. इसके अलावा कोच के अंदर नहाने-धोने के लिए बाथरूम और टॉयलेट भी बना होता है.
खत्म होगी सैलून की सुविधा
रेलवे में हर ज़ोन के महाप्रबंधक के लिए एक-एक सैलून होता है. यानी 16 महाप्रबंधकों का सैलून और इसके अलावा 67 मंडलों के डीआरएम के एक-एक सैलून होते हैं. साथ ही हर मंडल में कम से कम 2 सैलून पूल में होते हैं जिसका उपयोग निदेशक स्तर से लेकर ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं.
भारतीय रेल में 7-8 सैलून पूरी तरह से वातानुकूलित होते हैं जिसमें बोर्ड के सदस्यों से लेकर महाप्रबंधक तक सफर करते हैं. बाक़ी सैलून में सोने के कूपे में एसी लगा होता है. यानि सैलून की सवारी एक शाही सवारी बन जाती है.
सैलून को रेलवे के सवारी डब्बों को ही विशेष डिज़ाइन देकर तैयार किया जाता है और इसके रखरखाव में हर साल करोड़ों का खर्च आता है. लेकिन अब इन सैलूनों को खत्म कर दिया जाएगा और भारतीय रेल के हर ज़ोन में महज़ 2-2 सैलून रखे जाएंगे ताकि ज़रूरत पड़ने पर इसका उपयोग किया जा सके.
क्या हैं सैलून के नियम?
नियमों के मुताबिक सैलून का उपयोग कोई अधिकारी तब ही कर सकता है जब वो किसी इलाके में आधिकारिक तौर पर निरीक्षण के लिए जा रहा हो, वो आधिकारिक तौर पर ड्यूटी पर हो. इस विशेष कोच को किसी सामान्य ट्रेन में लगाकर ही अधिकारी इसमें यात्रा करते हैं.
कई बार रेल अधिकारी इसका दुरुपयोग भी करते हैं और निजी यात्रा को भी निरीक्षण का नाम देकर सैलून में शाही सवारी करते हैं. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने अब रेलवे अधिकारियों को इस तरह के शानोशौकत छोड़कर आम वातानुकूलित डब्बों में सफर करने को कहा है ताकि उन्हें मुसाफिरों की समस्याओं की जानकारी मिल सके.
हालांकि सैलूनों को बंद करने के इस फैसले से कई लोग सहमत नहीं हैं. नाम न लेने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी अक्सर आधिकारिक काम और निरीक्षण के लिए सफर पर होते हैं. ऐसे में एक बार में कई लोग एक सैलून में सफर कर लेते हैं और अंतिम समय में जरूरत पड़े तो सैलून के सहारे सफर किया जा सकता है.
खत्म होंगी सुविधाएं
हादसे जैसे हालात में सैलून में ही लोग मौके पर पहुंच जाते हैं और सैलून में ही नहाने-धोने का काम हो जाता है या रात गुज़ारनी हो तो कहीं होटल या गेस्ट हाउस तलाशने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. लेकिन सैलून के ख़त्म हो जाने से ये सुविधाएं ख़त्म हो जाएंगी और इससे निरीक्षण के काम में मुश्किल होगा और इससे रेलवे का खर्च भी बढ़ेगा.
एक और अधिकारी का कहना है कि कुछ बुनियादी सुविधाएं जो अधिकारियों को मिलती हैं उन्हें बरकरार रखा जाना चाहिए ताकि रेलवे की नौकरी का आकर्षण बना रहे और अच्छे अधिकारी रेलवे को भी मिलें. अगर कोई सुविधाओं का दुरुपयोग करता है तो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए न कि हर किसी से सुविधाएं छीन ली जाएं.