छत्तीसगढ़

वन भूमि पर गैर-वानिकी निर्माण कार्य पर हाईकोर्ट की रोक: केंद्र और राज्य शासन नोटिस, जानिए कानूनी पहलू और पर्यावरणीय पर प्रभाव…

High Court stays non-forestry construction work on forest land: Centre and state government notices, know legal aspects and impact on environment

छत्तीसगढ़/बिलासपुर: वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत देश की वन भूमि की सुरक्षा और उसके गैर-वानिकी उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने का प्रयास किया गया है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट द्वारा वन भूमि पर चल रहे एक गैर-वानिकी निर्माण कार्य पर रोक लगाने का निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण के प्रति न्यायपालिका की सतर्कता और कानूनी नियमों के अनुपालन की आवश्यकता को उजागर करता है।

मामले की पृष्ठभूमि:
छत्तीसगढ़ के सारंगढ़ जिले के ग्राम पंचायत सिंघानपुर में वन भूमि पर राज्य शासन द्वारा सार्वजनिक उपयोग के लिए एक निर्माण कार्य कराया जा रहा था। यह भूमि छोटे झाड़ के जंगल के रूप में अभिलेख में दर्ज है, जो वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अंतर्गत संरक्षित है। गांव की निवासी जानकी निराला ने इस गैर-वानिकी निर्माण कार्य के खिलाफ आवाज उठाई और तहसीलदार के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। उनका कहना था कि इस निर्माण से वन भूमि का रूपांतरण हो रहा है, जो कानूनन गलत है।

स्थानीय प्रशासन का दृष्टिकोण:
तहसीलदार ने इस मामले में मौके की जांच कराई और पुष्टि की कि निर्माण कार्य वन भूमि पर ही हो रहा है। बावजूद इसके, तहसीलदार और अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) ने प्रस्तुत आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा। इस मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि वन संरक्षण अधिनियम के अनुसार, किसी भी प्रकार के गैर-वानिकी निर्माण कार्य के लिए केंद्रीय सरकार की अनुमति आवश्यक है। बिना अनुमति के वन भूमि का उपयोग एक दंडनीय अपराध है।

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप:
इस प्रकरण की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से निर्माण कार्य पर रोक लगा दी और यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए। इसके साथ ही, कोर्ट ने केंद्र और राज्य शासन से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगते हुए नोटिस जारी किया है। इस प्रकार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वन भूमि का गैर-वानिकी परिवर्तन कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन है और इसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति अनिवार्य है।

वन संरक्षण अधिनियम 1980:
यह अधिनियम देश की वन संपदा की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करता है। इसके तहत वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग बिना केंद्रीय सरकार की अनुमति के नहीं किया जा सकता है। इस कानून का उल्लंघन दंडनीय अपराध माना जाता है और इसके तहत विभिन्न प्रावधानों के तहत दंड निर्धारित किए गए हैं।

पर्यावरणीय महत्व:
वन भूमि का गैर-वानिकी उपयोग न केवल कानूनी दृष्टिकोण से अनुचित है, बल्कि इसका पर्यावरण पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वनों का संरक्षण जलवायु संतुलन, जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इस प्रकार के गैर-वानिकी निर्माण से वन भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को नुकसान पहुंचता है और इससे स्थानीय पर्यावरणीय तंत्र पर दबाव बढ़ता है।

हाईकोर्ट का यह फैसला वन संरक्षण और पर्यावरणीय सुरक्षा के प्रति एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल वन संरक्षण अधिनियम 1980 के अनुपालन को सुनिश्चित करने में सहायक है, बल्कि यह भविष्य में वन भूमि पर होने वाले गैर-कानूनी निर्माण कार्यों को रोकने का एक संकेत भी है। न्यायालय का यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सार्थक और सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा सकता है, जो आने वाले समय में अन्य मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा।

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