Wednesday, February 5, 2025
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बिलासपुर: भाजपा नेता व कोयला व्यवसायी की आत्महत्या: सामने आया सुसाइड नोट में चार कारोबारियों पर गंभीर आरोप…

बिलासपुर, छत्तीसगढ़: सरगांव के कोयला व्यवसायी नरेन्द्र कौशिक की आत्महत्या ने स्थानीय समाज में गहरी चिंता पैदा कर दी है। नरेन्द्र कौशिक, जो बीते 6-7 महीनों से मानसिक और आर्थिक दबाव में थे, ने तिफरा स्थित अपने घर में सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली। उन्हें तुरंत इलाज के लिए अपोलो अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इस दर्दनाक घटना से पहले उन्होंने एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने अपनी आत्महत्या के लिए चार कोयला कारोबारियों और एक भाजपा के वरिष्ठ नेता को जिम्मेदार ठहराया।

नरेन्द्र कौशिक ने अपने सुसाइड नोट में विस्तार से बताया कि उन्होंने राजेश कोटवानी, संजय भट्ट, देवेन्द्र उपबेजा और सूरज प्रधान नामक चार कोयला कारोबारियों को अपने कोयला डिपो किराये पर दिया था। इसके अलावा, लोन पर उठाई गई गाड़ियाँ, दो लोडर और एक ट्रेलर, भी उन्हें दिया गया था। इन चारों आरोपियों के साथ एक समझौता हुआ था कि वे बैंक के लोन की किश्तें और जीएसटी का भुगतान करेंगे। लेकिन, नरेन्द्र के अनुसार, इन व्यापारियों ने न तो बैंक की किश्तें जमा कीं और न ही जीएसटी का भुगतान किया। इससे नरेन्द्र पर बैंक और अन्य सरकारी संस्थाओं का भारी दबाव बढ़ता चला गया।

करीब पंद्रह दिन पहले नरेन्द्र ने प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से मदद की गुहार लगाई थी। उन्होंने जिला कलेक्टर, पुलिस और अन्य उच्चाधिकारियों के समक्ष अपनी समस्या रखी और एक एफआईआर भी दर्ज कराई। नरेन्द्र ने आरोप लगाया कि राजेश कोटवानी ने न केवल उनके प्लाट पर कब्जा कर लिया था, बल्कि दो लोडर और ट्रेलर को भी अपने पास रोक लिया था। लेकिन, नरेन्द्र को प्रशासन से कोई राहत नहीं मिली, और आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इससे उनके मानसिक तनाव में और वृद्धि हुई।

सुसाइड नोट में नरेन्द्र ने इस पूरे मामले में जिले के एक प्रमुख भाजपा नेता से मदद की अपील करने का भी उल्लेख किया, लेकिन उन्हें वहां से भी कोई सहयोग नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि नेता की उदासीनता ने उन्हें आत्महत्या की ओर धकेल दिया।

सुसाइड नोट में नरेन्द्र ने इस बात पर जोर दिया कि इन चारों कारोबारियों ने उनका आर्थिक शोषण किया और बार-बार याद दिलाने के बावजूद किसी प्रकार का भुगतान नहीं किया। इससे उनके ऊपर बैंकों और जीएसटी विभाग का दबाव बढ़ता चला गया। प्रशासन से मदद न मिलने के कारण नरेन्द्र के पास कोई और रास्ता नहीं बचा, सिवाय आत्महत्या के।

यह घटना समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है। नरेन्द्र कौशिक जैसे सफल व्यवसायी, जिन्होंने अपनी मेहनत से व्यवसाय खड़ा किया था, को इस प्रकार आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह एक बड़ी विफलता है, न केवल प्रशासन की, बल्कि समाज के तंत्र की भी, जो एक पीड़ित व्यक्ति को समय पर न्याय दिलाने में असफल रहा।

नरेन्द्र कौशिक की आत्महत्या ने एक बार फिर प्रशासनिक व्यवस्था, न्याय प्रणाली और राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारियों पर सवाल खड़े किए हैं। ऐसे मामलों में, यदि समय रहते कार्रवाई की जाती, तो शायद नरेन्द्र की जान बचाई जा सकती थी। इस घटना की निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही है, ताकि भविष्य में कोई और व्यक्ति इस तरह के दुखद अंत तक न पहुंचे।

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