बिलासपुर की सड़कों पर एक दृश्य ने कई दिलों को झकझोर दिया। एक दिव्यांग मां, जो बैसाखी के सहारे चलती है, उसकी पीठ पर एक मासूम बालक बैठा है। इस दृश्य को देखने पर कई भावनाएं उमड़ पड़ती हैं — बेबसी, दर्द, लेकिन सबसे बढ़कर उम्मीद और साहस। इस मां की मुस्कान ने हर उस व्यक्ति को प्रेरित किया, जिसने उसे देखा।
यह तस्वीर ताजाखबर36गढ़ के कैमरे में कैद हुआ, जब एक दिव्यांग महिला महाराष्ट्र के अकोला से बिलासपुर की सड़कों पर भीख मांगते नजर आई। उसकी बैसाखी और पीठ पर बैठा नन्हा बच्चा उस समाज की कड़वी सच्चाई बयान करता है, जो आज भी जरूरतमंदों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखता है। इस कड़ाके की ठंड में किसी भले व्यक्ति ने बच्चे के लिए स्वेटर और टोपी का इंतजाम किया, यह किसी फरिश्ते से कम नहीं। लेकिन यह भी सवाल उठता है कि आखिर हमारे समाज में ऐसी माताएं और बच्चे क्यों इस हालत में जीने पर मजबूर हैं?
इस मां की मुस्कान को दो दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। पहला, यह एक ताकत का प्रतीक है। जीवन के कड़े संघर्षों के बावजूद, वह न केवल खुद को बल्कि अपने बच्चे को भी संभाल रही है। उसकी मुस्कान हमें बताती है कि जीवन की सबसे कठिन परिस्थितियों में भी हम साहस और उम्मीद के साथ आगे बढ़ सकते हैं।
दूसरी ओर, यह मुस्कान बेबसी का प्रतीक भी हो सकती है। शायद उसने जीवन के संघर्षों के सामने हार मान ली है और अब वह हालातों को स्वीकार कर चुकी है। यह एक ऐसी मुस्कान हो सकती है जो यह बताती है कि उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा है।
ऐसे दृश्य हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर हमारा समाज इन जरूरतमंदों के लिए क्या कर रहा है? सरकार की योजनाएं और सामाजिक कल्याण की नीतियां ऐसे लोगों तक क्यों नहीं पहुंच पातीं? यह सवाल न केवल सरकार से बल्कि हमसे भी है। क्या हम अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं? क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि हम ऐसे लोगों की मदद करें और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने में योगदान दें?
यह दृश्य सिर्फ एक महिला की बेबसी नहीं, बल्कि नारी शक्ति की एक मिसाल भी है। वह महिला अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए संघर्ष कर रही है, और इसी संघर्ष में उसकी ताकत छिपी है। वह चाहती तो हार मान सकती थी, लेकिन वह डटी हुई है। इस तस्वीर में उसकी मुस्कान उस अडिग इच्छा शक्ति को दर्शाती है जो हर मां में होती है — अपने बच्चे के लिए हर संघर्ष को पार करने की शक्ति।
यह दृश्य हमें यह याद दिलाता है कि हमारे आसपास की दुनिया में कितनी असमानताएं और संघर्ष हैं। यह सिर्फ एक दिव्यांग मां की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन हजारों माताओं की कहानी है जो हर रोज़ जिंदगी की लड़ाई लड़ रही हैं। हमें इस समाज को ऐसा बनाना होगा जहां कोई भी मां अपने बच्चे के साथ सड़कों पर भीख मांगने के लिए मजबूर न हो।