बिलासपुर शहर की पहचान और जीवनदायिनी मानी जाने वाली अरपा नदी आज खुद अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। सालों से इसकी अनदेखी होती आ रही है। पर्यावरण दिवस पर लोग सोशल मीडिया पर फोटो और स्लोगन तो साझा करते हैं, लेकिन ज़मीन पर हालात नहीं बदलते। यह लेख सिर्फ चिंता जताने के लिए नहीं, बल्कि समाधान और ज़िम्मेदारी तय करने के लिए है।
🌊 अरपा नदी का महत्व
अरपा केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि बिलासपुर की सांस्कृतिक, पर्यावरणीय और आर्थिक जीवनरेखा रही है। गर्मियों में जब भूमिगत जलस्तर गिरता है, तो यह नदी वॉटर रीचार्ज ज़ोन के रूप में काम करती थी। लेकिन आज हालात यह हैं कि नदी में कई महीनों तक पानी नजर नहीं आता।
🏛️ सरकार की भूमिका
- स्थायी पुनर्जीवन योजना बनाए: सिर्फ बरसात के भरोसे नहीं, बल्कि पूरे साल बहाव बना रहे ऐसी दीर्घकालिक ‘अरपा पुनर्जीवन योजना’ बने।
- कैचमेंट एरिया का संरक्षण: नदी में पानी आए इसके लिए उसके स्रोत क्षेत्रों की सुरक्षा जरूरी है। अवैध खनन और अतिक्रमण पर सख्त रोक लगे।
- नाले का पानी रोके: आज अरपा शहर के गंदे नालों की शरणस्थली बन गई है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के ज़रिये शुद्ध पानी ही नदी में जाए, यह सुनिश्चित किया जाए।
- नदी किनारे निर्माण पर रोक: तटों को अतिक्रमण मुक्त किया जाए और ग्रीन बेल्ट के रूप में विकसित किया जाए।
🏢 जिला प्रशासन की भूमिका
- नदी संरक्षण के लिए जिला टास्क फोर्स: नियमित निगरानी और साप्ताहिक रिपोर्टिंग हो, जिससे कोई भी अवैध गतिविधि समय पर रोकी जा सके।
- शहर की जलनीति से जोड़े: जल निकासी, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग, और शहरी योजना में अरपा को मुख्यधारा में लाया जाए।
- शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़कर जन-जागरूकता: स्कूली छात्रों और कॉलेजों को नदी संरक्षण अभियानों से जोड़ा जाए।
🧑🤝🧑 आम नागरिकों की भूमिका
- नदी को कचरे की जगह न समझें: लोग प्लास्टिक, पूजा सामग्री, घरेलू कचरे को नदी में फेंक देते हैं। यह मानसिकता बदलनी होगी।
- जन आंदोलन की शुरुआत करें: जिस तरह नर्मदा या यमुना के लिए जन आंदोलन हुए, उसी तरह अरपा के लिए भी स्थानीय स्तर पर आंदोलन की ज़रूरत है।
- रेन वॉटर हार्वेस्टिंग अपनाएं: हर घर, हर मोहल्ला वर्षा जल संग्रहण करे, जिससे भूजल स्तर सुधरे और नदी को पानी मिलने लगे।
- वालंटियर बनें: सफाई अभियान, वृक्षारोपण या नदी तट संवर्धन में लोग स्वयं भाग लें।
📢 सिर्फ एक दिन याद न करें…
पर्यावरण दिवस सिर्फ “फोटो खिंचवाने” या “भाषण देने” का दिन नहीं है। यह आत्ममंथन और संकल्प का दिन होना चाहिए। अरपा नदी का सूखना सिर्फ पर्यावरणीय संकट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और मानवीय चेतावनी है। इसे बचाना हम सभी की साझा ज़िम्मेदारी है।
नदी बचेगी, तो शहर बचेगा — क्योंकि अरपा है तो कल है।