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छत्तीसगढ़: वरिष्ठ पत्रकार और वाइल्डलाइफ फ़ोटो जर्नलिस्ट, सत्यप्रकाश जी के आँखों देखी…वन्यप्राणी आस्था की शक्ल में इंसान के करीब…देखें तसवीरें…

बिलासपुर: महासमुंद/सत्यप्रकाश पाण्डेय/ उन जानवर के सामने मैं निःशब्द हूँ क्यूंकि मैं एक इंसान हूँ, अक्सर शहर के जंगलों में मुझे जानवर नज़र आतें है इंसान की शक्ल में घूमते हुए शिकार को ढूंढते और झपटते हुए.. फिर नोचते और खाते हुए। ये ख्याल मेरे जहन में उस वक्त आया जब मैं छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में मुंगई माता के मंदिर में हर रोज होने वाली एक अप्रत्याशित घटना का साक्षी बना।

वैसे तो इस देश में चमत्कारों और आध्यात्मिक शक्तियों की वजह से कई मंदिर प्रसिद्ध हैं लेकिन छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में मुंगई माता का मंदिर हर रोज होने वाली एक घटना के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में केवल इंसान ही पूजा नहीं करते हैं बल्कि हर रोज जंगली भालुओं का पूरा परिवार पहाड़ी रास्ते से नीचे उतरकर माता के दर्शन के लिए मंदिर की चौखट तक पहुंचता है। मुंगई माता के मंदिर में जहां हर रोज सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं, वहीँ दिन ढलते ही चार भालुओं का परिवार हर रोज मुंगई माता की पूजा का साक्षी बनता है। मुंगई माता के दरबार में भक्तों की भीड़ के बीच जंगली भालुओं के परिवार की मौजूदगी निश्चित तौर पर कौतुहल का बड़ा कारण है।

रायपुर से सरायपाली मुख्य मार्ग पर स्थित मुंगई माता का मंदिर भले ही प्राचीनतम इतिहास से सरोकार ना रखता हो लेकिन जंगली भालुओं और इंसानी रिश्तों के बीच होती प्रगाढ़ता के लिए जरूर सदियों तक जाना जाएगा। महासमुंद जिले के ग्राम बावनकेरा [रायपुर से सरायपाली मुख्य मार्ग ] में मुंगई माता मंदिर के पुजारी टिकेश्वर दास वैष्णव बताते हैं कि पांच भालू का परिवार पास की पहाड़ी में सालों से रह रहा है, करीब दो बरस पहले परिवार का एक सदस्य यानी एक भालू सड़क हादसे में मारा गया।

अब भालुओं के परिवार में नर-मादा के अलावा दो बच्चे हैं, चार सदस्यों का यह परिवार पिछले दो दशक से शाम के वक्त माँ की आरती में शरीक होने रोज पहाड़ से नीचे उतरकर मंदिर में आता है। मंदिर आने वाले भालुओं ने कभी किसी भक्त या आसपास के इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है, हाँ कई बार लोगों की गैर वाज़िब हरकतें जंगली भालुओं को नागवार जरूर गुजरती हैं। उस वक्त भालू इंसान पर अपना गुस्सा दिखाने के लिए जरूर कुछ दूर दौड़ाता है मगर आज तक किसी इंसान पर इन भालुओं ने प्राणघातक हमला नहीं किया। मंदिर के पुजारी बताते हैं भालू नारियल, रेवड़ियां और बिस्किट्स खूब चाव से खाते हैं, इतना ही नहीं हर मौसम में उन्हें ठंडा माज़ा [कोलड्रिंक्स] खूब भाता है।

वैसे छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में ही बागबहरा तहसील मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूर चंडी देवी का मंदिर है, वहां भी सालों से भालुओं का परिवार शाम की पूजा के वक्त मंदिर पहुंचता है। राज्य के महासमुंद जिले का मुंगई माता का मंदिर दुसरा ऐसा मंदिर है जहां वन्यप्राणी आस्था की शक्ल में इंसानों के इतने करीब हैं।
माता के दरबार में बिना किसी मनोकामना के हर रोज पेट पूजा के लिए पहुँचने वाले आस्थावान जंगली भालुओं को सुरक्षा और संरक्षण की दरकार है जिसे लेकर जिले का वन महकमा बेहद असंवेदनशील दिखाई देता है।

यह मंदिर नेशनल हाइवे पर है, मंदिर प्रांगण के इर्द-गिर्द किसी तरह का सुरक्षा घेरा नहीं है। इन जंगली भालुओं के करीब हर वो इंसान पहुँचना और उसे अपने हाथ से खिलाना-पिलाना चाहता है जो वहां मौजूद है, ऐसे में किसी भी दिन अनहोनी या फिर बड़ी घटना से इंकार नहीं किया जा सकता। आस्था के नाम पर सालों से चल रही इस अप्रत्याशित घटना में सावधानी और सतर्कता बेहद जरूरी है।

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