Advertisement
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार और मीडिया धारा-377 पर फैसले का व्यापक प्रचार करे, पढ़ें फैसले के 9 मुख्य बिंदु

(ताज़ाख़बर36गढ़) सुप्रीम कोर्ट ने दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से आज बाहर कर दिया। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सहमति के एक फैसले में भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को निरस्त कर दिया।

इस मामले में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस रोहिंगटन एफ नरीमन, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग-अलग लेकिन सहमति का फैसला सुनाया। ये याचिकाएं नवतेज जोहार एवं अन्य ने दायर की थीं। इन याचिकाओं में धारा 377 को चुनौती दी गयी थी।

समलैंगिकताः 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 का यह हिस्सा हुआ निरस्त

फैसले के 9 मुख्य बिंदु

1. धारा 377 के कारण एलजीबीटी सदस्य छुप कर और दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में रहने को विवश थे जबकि अन्य लोग यौन पसंद के अधिकार का आनंद लेते हैं।

2. संविधान समाज के सेफ्टी वाल्व के रूप में असहमति का पोषण करता है, हम इतिहास नहीं बदल सकते लेकिन बेहतर भविष्य के लिए राह प्रशस्त कर सकते हैं

3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक किसी निजी स्थान पर आपसी सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का सवाल है तो ना यह हानिकारक है और ना ही समाज के लिए संक्रामक है।

4. सुप्रीम कोर्ट ने यौन रुझान को जैविक स्थिति बताते हुए कहा कि इस आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

5. अदालतों को व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी गई है

6. एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं।

7. धारा 377 से समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है।

8. पशुओं के साथ किसी तरह की यौन क्रिया भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत दंडनीय अपराध बनी रहेगी

9. भारतीय दंड संहिता की धारा 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है।

जजों ने क्या कहा-

-खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है- चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा

-एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को अन्य नागरिकों की तरह संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। धारा 377 के कारण एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को निशाना बनाया जाता रहा है और उनका उत्पीड़न किया जाता था- जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

-सरकार, मीडिया को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक प्रचार करना चाहिए ताकि एलजीबीटीक्यू समुदाय को भेदभाव का सामना नहीं करना पड़े- जस्टिस नरीमन

error: Content is protected !!