बिलासपुर/ बिलासपुर विधानसभा में भी चुनावी रंग सिर चढ़कर बोल रहा है। राजनैतिक दलों के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशियों ने वोटरों को लुभाने के लिए वायदों का पिटारा खोल दिया है। इधर, अरपा नदी के 200 मीटर के दायरे में रहने वाले नागरिकों की धड़कनें तेज हैं। उनका कहना है कि उन्हें ‘टेम्स’ नहीं चाहिए। वे वहीं पर रहना चाहते हैं, क्योंकि उन मकानों में उनके पुरखों की यादें बसती हैं। वे उन्हें ही वोट देंगे, जो यह लिखकर दे कि उनका आशियाना नहीं उजाड़ेंगे।
विधानसभा चुनाव के साथ अरपा नदी को लंदन की ‘टेम्स’ की तर्ज पर सुधारने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। दरअसल, करीब 10 साल पहले मंत्री अमर अग्रवाल ने अरपा नदी को टेम्स की तर्ज पर संवारने की योजना लाई। इसके लिए अरपा विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। टेम्स जैसी संवारने के लिए कागज में खाका खींचा गया। इसके अनुसार नदी के दोनों किनारे 200 मीटर तक सौंदर्यीकरण किया जाना है। यह तय होते ही इस दायरे में आने वाले पट्टे के मकान मालिकों को नोटिस भेजे गए। कई परिवारों को खाली तक करा दिया गया। कई परिवार अब भी मौके पर बसे हुए हैं। दूसरी ओर, निजी जमीन पर किसी तरह निर्माण या तोड़फोड़ पर रोक लगा दी है। यह रोक लगे 10 साल हो गए हैं, लेकिन अब तक टेम्स की तर्ज पर संवारने के नाम पर एक ईंट तक नहीं रखी गई है। इससे नदी किनारे रहने वाले लोग संशकित हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर वे क्या करें। विधानसभा चुनाव की दस्तक देते ही ये नागरिक एक बार फिर मुखर हो गए हैं। नदी किनारे बसे अधिकांश नागरिकों का कहना है कि सरकार की ओर से उन्हें किसी तरह की सुविधाएं तो नहीं दी जा रही हैं। वे पानी, बिजली और सड़क के लिए तरह रहे हैं। राशन, पेंशन के लाले पड़ गए हैं। यह सजा इसलिए दी जा रही है, ताकि वे वहां से कहीं और चले जाएं, पर वे ऐसा नहीं करेंगे। नागरिकों ने ठान लिया है कि इस बार वे उसी प्रत्याशी को वोट देंगे, जो उनका आशियाना नहीं उजाड़ेंगे।
सिर्फ वोट मांगने आते हैं विधायक
ताजाखबर36गढ़.कॉम से बात करते हुए जनता ने कहा कि हम 20 साल से इस मकान में रह रहे हैं। इतनी मेहनत और पैसा लगाकर अपना मकान बनाएं हैं और अब सरकार इसको तोड़कर हमे बेघर करना चाह रही है। अरपा के विकास के नाम पर हमें घर से निकाल रही है, जबकि आज तक अरपा का कोई विकास नहीं हुआ। नदी सूखी पड़ी है और गरीब आमजन को पानी की समस्याओं से जूझना पड़ता है। यहां के विधायक बस चुनाव के समय वोट मांगते नजर आते हैं। चुनाव जीतने के बाद पार्षदों को भी हमारी परेशानियों से कोई मतलब नहीं रहता। शौचालय के नाम पर गड्ढा खोदकर चले गए और एक साल तक उसे नहीं बनाया गया। घर में न शौचालय है और न ही नल।