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राजनीति

बिलासपुर लोकसभा: समाज विशेष से लगातार प्रत्याशी उतारने से दो समाज लामबंद, मीटिंग में निर्णय- वोट बैंक नहीं, अब किंग मेकर बनेंगे…समझिए इनके फैसले के मायने…पढ़े पूरी ख़बर

बिलासपुर। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग हो गई है। शुक्रवार को छत्तीसगढ़ की तीन सीटों पर हुए मतदान के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। तीनों सीटों में मतदान का औसत 72 फीसदी से अधिक है। राजनांदगांव में तो मतदान का रिकार्ड टूट गया है। पंचायत और विधानसभा की तर्ज पर पड़े वोट सभी राजनैतिक पार्टियों के लिए चिंता का सबब बना हुआ है। हालांकि राष्ट्रीय पार्टियों के नेता और प्रत्याशियों के दावे अपने-अपने हैं, लेकिन पार्टी नेता से लेकर प्रत्याशी भी ऊहापोह की स्थिति में हैं कि एक दिन के भगवान (मतदाता) ने किसकी तकदीर लिख दी है। खैर… इसका खुलासा तो नतीजे जारी होने के बाद होगा। तीसरे चरण में प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक बिलासपुर लोकसभा के सांसद के लिए वोटिंग होगी।

इस बार के चुनाव में यहां की परिस्थिति बदली-बदली नजर आ रही है। यहां से भाजपा ने एक बार फिर से साहू समाज का कार्ड खेला है। यह दांव खेलने के पीछे का सबसे बड़ा कारण सामाजिक वोटर है। कांग्रेस ने भी करारा जवाब देते हुए यादव कार्ड खेल दिया है। दोनों पार्टियों की ओर से प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होने के बाद से बिलासपुर लोकसभा की राजनीति हर दिन करवट ले रही है।

बिलासपुर लोकसभा सीट पर नजर डालें तो पता चलता है कि यहां करीब 20 लाख वोटर हैं। दावा यह कि यहां सबसे अधिक साहू वोटर हैं। दूसरा यादव व तीसरे नंबर पर कुर्मी समाज के वोटर हैं। हालांकि तीनों समाजों के प्रमुख अपने समाज के वोटर सबसे ज्यादा होने का दावा करते नहीं थकते। फिलहाल, निष्कर्ष यह है कि बिलासपुर लोकसभा सीट ओबीसी बाहुल्य है। और यह भी तय है कि खंदक की इस लड़ाई का विजयी सेहरा भी ओबीसी के सिर सजेगा, लेकिन किसके…यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है।

बात करते हैं बीजेपी की तो बिलासपुर लोकसभा से लगातार तीसरी बार प्रत्याशी का चेहरा बदला गया है, लेकिन सामाजिक ताना-बाना पुराना है। ऐसा भी नहीं है कि बीते दो चुनावों के प्रत्याशियों को हार मुंह देखना पड़ा। दोनों ही प्रत्याशियों लखनलाल साहू और अरुण साव ने अच्छे-खासे वोट से फतह हासिल की है। लेकिन रिपीट किसी को नहीं किया। इस बार पूर्व विधायक तोखन साहू को नायक के रूप में उतारा गया है। साहू समाज से फिर एक बार प्रत्याशी उतारना बीजेपी के लिए संकट नजर आने लगा है। दरअसल, लगातार तीसरी बार साहू समाज को तवज्जो देने से यहां के कुछ समाज प्रमुख खासे नाराज चल रहे हैं। कुर्मी समाज के सामाजिक खाने से जो बातें उड़ कर सामने आ रही हैं, वह बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। यह तो जगजाहिर है कि जिले में कुर्मी समाज के 11 मंडल हैं, जिसके अपने-अपने कर्ताधर्ता हैं। बताया जा रहा है कि बीते 11 अप्रैल की दोपहर बाद तखतपुर मंडी प्रांगण में कुर्मी बंधुओं की सामाजिक बैठक रखी गई। इसमें 8 मंडल के अध्यक्ष समेत सभी पदाधिकारी शामिल हुए। तीन मंडल के सदस्य तो आए, लेकिन पदाधिकारी गायब रहे। बैठक में लोकसभा चुनाव और प्रत्याशी चयन को लेकर गंभीर चर्चा हुई। समाज प्रमुखों ने कहा कि बीजेपी ने बिलासपुर लोकसभा को साहू समाज के हवाले कर दिया है। यही वजह है कि लगातार तीसरी बार इसी समाज से उम्मीदवार उतारा गया है। उन्होंने बारी-बारी से साहू समाज के तीनों नेताओं के बारे में आंकलन किया। निष्कर्ष निकला कि जिला पंचायत सदस्य रहे लखनलाल साहू को लोगों ने इसलिए पसंद किया, क्योंकि उनका स्वभाव सरल और सौम्य था। बीजेपी ने पहली बार किसी साहू पर भरोसा जताया था। तब लग रहा था कि धीरे-धीरे ही सही, पर ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले अन्य समाज के नेताओं की भी बारी आएगी।

2018 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ से जुड़े अरुण साव को टिकट दिया गया। उनके मुकाबले कांग्रेस ने कमजोर प्रत्याशी उतारा, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। सांसदी कार्यकाल में ही अरुण साव को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष की कमान मिली। उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा गया। बहुमत मिला तो लग रहा था कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद अब दूसरी बार बिलासपुर संभाग से सीएम होंगे, लेकिन हुआ ऐसा नहीं। डिप्टी सीएम का पद देकर बिलासपुर को लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया। लॉलीपॉप इसलिए, क्योंकि उसी पद पर एक नए-नवेले नेता को बिठा दिया गया है। समाज प्रमुखों ने तर्क दिया कि बिलासपुर लोकसभा सीट ओबीसी बाहुल्य है तो क्या सिर्फ साहू समाज ही ओबीसी में आता है। क्या कुर्मी, केंवट, पनिका, धोबी, यादव, पटेल समाज का वास्ता नहीं है या फिर इस वर्ग से बीजेपी के पास कोई नेता नहीं है। बहुमत में जवाब यह आया कि किसी भी समाज में प्रतिभाशाली नेताओं की कमी नहीं है, लेकिन साहू समाज को छोड़कर ओबीसी से ताल्लुख रखने वाले अन्य समाज बीजेपी की अनदेखी के शिकार हैं। इन्हें संगठन के नेताओं ने झंडा उठाने और नारे लगाने तक सीमित करके रखा है। यह जवाब आने के बाद समाज प्रमुखों ने तल्ख शब्दों में कहा कि बहुत हो गया, अब बर्दाश्त नहीं होता और न ही अब बर्दाश्त करेंगे।

बैठक में मौजूद पदाधिकारियों और सदस्यों ने एक स्वर में शपथ ली कि हमें सिर्फ वोट बैंक समझने वाली पार्टी को इस बार अपनी ताकत दिखाकर रहेंगे। इसके लिए चाहे जो करना पड़ जाए। बता दें कि बैठक में बीजेपी-कांग्रेस संगठन में बड़े पदों पर आसीन रह चुके कुर्मी नेता भी शामिल थे, जिन्होंने समाज के सामने अपना मुंह तक नहीं खोला। हालांकि बीजेपी से नाराज कुर्मी समाज ने यह पत्ता नहीं खोला है कि इस चुनाव में वह किसे वोट करेंगे। बहरहाल, कुर्मी समाज की इस लामबंदी से बीजेपी के सामने संकट के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं।

संतोष कौशिक अवसरवादी, सामाजिक नेता नहीं

कुर्मी समाज के मंडल पदाधिकारियों द्वारा बुलाई गई बैठक में सामाजिक नेता संतोष कौशिक को लेकर काफी देर तक चर्चा हुई। इस दौरान कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने दबाव में आकर पार्टी बदली है। मन से वे अब भी हमारे साथ हैं। यहां जो भी निर्णय लिया जाएगा, उस पर वे भी अमल करेंगे। वे समाज से बाहर नहीं जाएंगे। इस दौरान मंडल प्रमुखों ने संतोष कौशिक की राजनीतिक सक्रियता की सारी गठरी खोलकर रख दी। समाज प्रमुखों ने कहा कि जिस इंसान की आस्था एक पर नहीं टिकी है, वह किसी का नहीं हो सकता। संतोष कौशिक ने पहले जोगी कांग्रेस पर आस्था जताई। इस पार्टी से चुनाव भी लड़ा और समाज से साथ भी लिया, लेकिन हुआ क्या। 2023 में समाज को भरोसे में लिए बगैर वह कांग्रेस में शामिल हो गए। टिकट की दोवदारी की, लेकिन मिला नहीं। महज एक साल में संतोष कौशिक का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और अचानक बीजेपी पर आस्था जग गई। 6 साल के अंदर उनके तीन किरदार से यह साबित हो गया है कि वह सामाजिक नेता नहीं, अवसरवादी है। वह सिर्फ अपना देखते हैं, जहां उन्हें फायदा नजर आता, उसी के पाले में चला जाता है। इसलिए समाज को उससे दूरी बनाकर रखना होगा।

मल्हार में केंवट समाज ने ली शपथ

बीजेपी की ओर से लगातार साहू समाज और मुंगेली जिले से ही प्रत्याशी उतारना केंवट समाज को भी नहीं पच रहा है। कुर्मी समाज की बैठक से पहले केंवट समाज के प्रमुखों और सदस्यों की मीटिंग मां डिंडिनेश्वरी देवी की नगरी मल्हार में हुई। इस मीटिंग में भी कुर्मी समाज की तरह सारी परिस्थितियों पर मंथन किया गया। तय हुआ कि हमारा समाज कब तक वोट बैंक कहलाता रहेगा। अब नहीं, तो कभी नहीं। हमें अपना प्रभाव दिखाना ही होगा। हमारे लिए यही अच्छा समय है। बैठक में सभी ने शपथ ली कि हमें दरकिनार करने वाली पार्टी को सबक सीखा कर रहेंगे।

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