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मुखिया बनने के बाद आईएएस की पत्नी ने बदली पूरे गांव की तस्वीर, आई कई परेशानियां, मिले कई पुरस्कार

दुनिया में अपने लिए काम करने वाले बहुत लोग मिल जाएंगे, लेकिन जो समाज के लिए काम करें ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है। आज हम आपको ऐसी ही एक महिला की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर अपने पूरे गांव की तस्वीर ही बदलकर रख दी। हम बात कर रहे हैं, रितू जायसवाल की।

रितू आईएएस अफसर अरुण कुमार की पत्नी हैं और समाज की भलाई करने के लिए जानी जाती हैं। आज उनके गांव में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं है, लेकिन अपने गांव की ऐसी तस्वीर बनाना उनके लिए इतना आसान नहीं था। कहानी शुरू होती है, रितू के अपने ससुराल आने से।

जब वह शादी के 15 साल बाद अपने ससुराल आईं तो वह गांव का पिछड़ापन देखखर काफी परेशान हो गईं। ना तो गांव में बिजली थी और ना सड़क। रितू से ये सब देखा ना गया, और उन्होंने गांव को इस पिछड़ेपन से निकालने का ठान लिया। रितू ने मुखिया बनने के बाद गांव के विकास के लिए काफी काम किया। यही कारण है कि अब गांव में उन्हें बेटी जैसा प्यार मिल रहा है।

आसान नहीं था सब पाना

रितू बिहार के सीतामढ़ी जिले के सिंघवाहिनी पंचायत की मुखिया हैं। सड़क बनाने के लिए लोग अपनी जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद मनाया गया। रितू विकास के सभी कामों की निगरानी खुद करती हैं। इस दौरान वह कभी बाइक चलाती दिखती हैं, तो कभी ट्रैक्टर और जेसीबी पर सवार दिखती हैं।

शादी के 15 साल बाद आईं गांव

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रितू ने बताया कि उनकी शादी साल 1996 में हुई थी। उनके पति 1995 बैच के आईएएस (अलायड) अरुण कुमार हैं। शादी के 15 साल तक जहां भी उनके पति की पोस्टिंग होती थी, वह साथ जाती थीं। लेकिन 15 साल बाद उन्होंने अपने पति से ससुराल जाने की बात की और उनके घर के सभी लोग नरकटिया गांव जाने के लिए तैयार हो गए।

तभी रास्ते में गांव पहुंचने से कुछ दूरी पर उनकी गाड़ी कीचड़ में फंस गई। जब काफी कोशिशों के बाद भी गाड़ी कीचड़ से नहीं निकली तो बैलगाड़ी पर सवार होना पड़ा। लेकिन कुछ देर जाते ही वो भी कीचड़ में फंस गई। जिसके बाद रितू उस क्षेत्र का विकास करने के लिए प्रेरित हुईं।

गांव की लड़कियों को पढ़ाया

रितू ने विकास की शुरुआत गांव की लड़कियों को पढ़ाने से की। साल 2015 में नरकटिया गांव की 12 लड़कियों ने पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर 2016 में रितू ने सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ा। रितू के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए 32 उम्मीदवार थे। जिसमें उन्हें जीत मिली।

कई परेशानियां आईं

गांव की मुख्य सड़क बनाने के लिए टेंडर हुआ था, जिसमें कुछ असामाजिक तत्वों ने अड़ंगा लगाया। जिसके कारण टैंडर रद्द हो गया। लेकिन इसके बाद सड़क के लिए जल्द ही काम शुरू हो गया। लेकिन सड़क के लिए जमीन की जरूरत थी, जिसे गांव वाले छोड़ने के लिए नहीं मान रहे थे। रितू ने इसके लिए लोगों को मना लिया।

उन्होंने लोगों को बताया कि अगर सड़क नहीं बनेगी तो गांव का विकास कैसे होगा। बच्चे कैसे गांव से बाहर जाएंगे, खेती का सामान अगर बाजार में बेचा जाए तो और अधिक पैसा मिलेगा। साथ ही गांव के बीमार लोगों को भी इलाज के लिए गांव के बाहर ले जाया जा सकेगा। इन बातों का असर गांव वालों पर हुआ और वो अपनी जमीन छोड़ने के लिए राजी हो गए।

पूरे गांव में पहुंची बिजली

सिंघवाहिनी पंचायत 2016 में खुले में शौच से मुक्त हो गया था। इस पंचायत में कुल सात टोले हैं, जिनमें से कई में पीसीसी सड़क बन गई है। अब गांव में बिजली भी पहुंच गई है। गांव में बच्चों का समूह बनाकर उन्हें मुफ्त में शिक्षित किया जा रहा है। उन्हें पढ़ाने वाली भी गांव की ही लड़कियां हैं। रितू का कहना है कि उन्होंने पहले 20 लड़कियों को प्रशिक्षित किया था।

क्योंकि लोगों को अकेले जागरुक करना उतना आसान नहीं है। अब ये लड़कियां बाकी बच्चों को कंप्यूटर सिखा रही हैं। कई लड़कियां ऐसी भी हैं, जो महिलाओं को सिलाई और कढ़ाई सिखा रही हैं। जिसके लिए सरकार से लेकर एनजीओ तक की मदद मिल रही है। बता दें अपने इन्हीं कड़े प्रयासों के कारण रितू को उच्च शिक्षित मुखिया का अवॉर्ड मिल चुका है। साथ ही उन्हें पंचायत के विकास के लिए भी कई पुरस्कारों से नवाजा गया है।

रितू को पंचायत में बेहतर काम के लिए दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने ‘चैंपियंस ऑफ चेंज अवार्ड’ से भी नवाजा है। ये कार्यक्रम इंटरेक्टिव फोरम ऑन इंडियन इकोनॉमी ने आयोजित किया था।

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