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छत्तीसगढ़

पति और ससुराल पक्ष पर झूठा मामला दर्ज कराना एक तरह से क्रूरता है: हाईकोर्ट…दिन भर कोर्ट में बैठना भी प्रताड़ना…

महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पति और सुसराल पक्ष के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराना एक तरह से क्रूरता है। इससे स्वजन को प्रताड़ित होना...

बिलासपुर। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पति और सुसराल पक्ष के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराना एक तरह से क्रूरता है। इससे स्वजन को प्रताड़ित होना पड़ता है। कोर्ट से लेकर पुलिस तक दौड़ लगाते हुए परेशानी झेलनी पड़ती है। पति की याचिका पर हाई कोर्ट ने तलाक की अर्जी मंजूर कर ली है।

रायपुर निवासी दीपक देवांगन का विवाह अपनी दोस्त के साथ अप्रैल 2013 में हुई थी। युवती सरकारी नौकरी में होने के कारण अक्सर ही अपने पति को प्रताड़ित करती थी। साथ ही पति के पूरे वेतन को अपने परिजन और पिता के इलाज में खर्च कर देती थी। इससे विवाद शुरू हुआ। कई बार समझाने की कोशिश हुई लेकिन झूठे मामले में फंसाने की धमकी देकर युवती घर से चली गई। बाद में समाज के बुजुर्गों की समझाइश के बाद घर वापस भी आई। विवाद लेकिन जारी रहा और दहेज प्रताड़ना का मामला पति के खिलाफ जुलाई 2016 में दर्ज करा दिया गया। काउंसिलिंग भी की गई। लेकिन पत्नी नहीं मानी। ऐसे में पति द्वारा तलाक की मांग करते हुए जिला कोर्ट में याचिका दायर की गई। इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

पति ने तलाक के लिए हाई कोर्ट में याचिका पेश की। कोर्ट ने युवती को नोटिस दिया। लेकिन उसने इसका जवाब नहीं दिया और ना ही उसका कोई वकील ही पेश हुआ। कोर्ट की ओर से कई अवसर देते हुए बार-बार मामले की सुनवाई बढ़ाई। दूसरी ओर पति की ओर से साबित करने की कोशिश की गई कि उसे धारा 294 और 323 के तहत झूठे मामले में फंसाया गया था। मामले की सुनवाई के बाद यह भी साफ हो गया कि दर्ज FIR गलत थी। याचिका में पति की ओर से कहा गया कि पत्नी द्वारा लगातार पैसे की मांग करते हुए दबाव बनाया जाता था। स्र्पये नहीं देने पर झूठी एफआइआर कराई गई जो कि क्रूरता की श्रेणी में आता है।

दिन भर कोर्ट में बैठना भी प्रताड़ना

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ एफआइआर होती है उसे सुनवाई के लिए दिनभर कोर्ट में बैठना पड़ता है। प्रतिवादी के नहीं आने से सुनवाई बढ़ जाती है। ऐसे मामले में उस व्यक्ति द्वारा झेली गई शारीरिक और मानसिक क्रूरता को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। युवती 36 सुनवाई के बाद भी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुई तो यह गलत है।

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